आधारहीन
क्षितिज के पार
व्योमा के घर
अब क्यों सुलगती हैं अँगीठियाँ?
अचानक से बड़े हुए हम
अपनी अनगिनत त्रुटियों हेतु
अब स्वयँ उत्तरदायी
ओह समय....कसाई!
लघुतम का महत्तम
अपवर्त्यों का दास
बाप-माई, बहिनी-भाई!
सिसकता है यह कौन?
चुप सिरहाने
तू कह बिवाई!
अकथ सन्ताप?
अरे घर जा भाई...!
या ऐसा कर
तू मर जा भाई।
Comments
Post a Comment